क्या है विवाद की वजह :
एन सी ई आर टी की 12वीं क्लास की किताबों से कुछ चैप्टर हटाए गए हैं, जिनमें ‘थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री 2’ के चैप्टर ‘किंग्स एंड क्रॉनिकल्स: द मुगल कोर्ट’ को हटाया गया है। पॉलिटिकल साइंस से भी कुछ चैप्टर हटाए गए हैं। जिसमें कांग्रेस शासनकाल पर आधारित एरा ऑफ वन पार्टी डॉमिनेंस शामिल है। इसके अलावा 11वीं के सिलेबस से भी कुछ हिस्से हटाए गए हैं। जिसमें सेंट्रल इस्लामिक लैंड और कन्फ्रंटेशन ऑफ कल्चर्स जैसे चैप्टर शामिल हैं। इतिहास और हिंदी पाठ्यपुस्तकों के अलावा, एनसीईआरटी ने वीं 12 की नागरिक शास्त्र की पाठ्यपुस्तक में भी बदलाव किया है। दो चैप्टर- ‘विश्व राजनीति में अमेरिकी आधिपत्य’ और ‘द कोल्ड वॉर एरा’ भी सिलेबस से हटा दिए गए हैं।एनसीईआरटी ने 12वीं के साथ 10वीं और 11वीं की किताबों में भी कुछ बदलाव किए हैं। ‘लोकतंत्र और विविधता’, ‘लोकतंत्र की चुनौतियां’ और ‘मशहूर संषर्घ और आंदोलन’ जैसे अध्यायों को 10 वीं लोकतांत्रिक राजनीति-2 की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया है। जबकि ‘सेंट्रल इस्लामिक लैंड्स’, ‘औद्योगिक क्रांति’ और ‘संस्कृतियों का टकराव’ जैसे अध्यायों को 11वीं की पाठ्यपुस्तक – थीम्स इन वर्ल्ड हिस्ट्री से हटा दिया गया है।इसमें मुगलों का इतिहास बताया गया था, जिसे पिछले कई सालों से स्कूलों में पढ़ाया जा रहा था। जिस पर जम कर विवाद जारी है। एन सी ई आर टी के डायरेक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी ने लेकर सफाई दी। उन्होंने कहा कि “ये बात बिल्कुल झूठ है कि इतिहास को बदला जा रहा है। कोरोना काल के दौरान से सिलेबस कम करने की कोशिश शुरू हुई थी, जिसके तहत ये किया गया है। मुगलों का इतिहास सिलेबस से नहीं हटाया गया है, जिन चीजों का रिपीटिशन हो रहा था उन्हें हटाया गया है।” दिनेश प्रसाद सकलानी ने कहा कि एनसीईआरटी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ के अनुसार काम कर रहा है। NEP के अनुसार 2024 में नई पाठ्यपुस्तकें छपेंगी। हमने मौजूदा किताबों से अभी कुछ भी नहीं हटाया है।’ पाठ्यपुस्तकों में होने वाला बदलाव देश भर में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम का पालन करने वाले सभी स्कूलों पर लागू होगा। एनसीईआरटी के मुताबिक सभी बदलाव नए शैक्षणिक सत्र 2023-24 से लागू होंगे।
क्या हैं हटाए गए विषय :
एन सी ई आर टी ने 12वीं क्लास की पॉलिटिकल साइंस की किताब से कुछ हिस्से हटा दिए हैं, जिसको लेकर विवाद चल रहा है।हटाए गए विषयों के बारे में जानकारी इस प्रकार हैं।
- महात्मा गांधी की हत्या के बाद देश की सांप्रदायिक स्थिति पर असर।
- गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता की अवधारणा ने हिंदू कट्टरपंथियों को उकसाया।
- गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध।
बताया गया है कि जो सामग्री ‘महात्मा गांधी के बलिदान’ के उपशीर्षक के तहत है, वह 15 अगस्त 1947 को गांधी की हिंसा से प्रभावित कोलकाता की यात्रा और हिंदुओं और मुसलमानों को हिंसा छोड़ने के लिए समझाने के उनके प्रयासों के बारे में बताती है। गांधी की हत्या का वर्णन करने वाले पैराग्राफ में लिखा है। “आखिरकार, 30 जनवरी 1948 को, ऐसे ही एक उग्रवादी, नाथूराम विनायक गोडसे, दिल्ली में गांधीजी की शाम की प्रार्थना के दौरान उनके पास गए और उन पर तीन गोलियां चलाईं, जिससे उनकी तुरंत मौत हो गई।”
गुजरात दंगों के संदर्भ को हटाया गया :
एन सी ई आर टी ने अपनी 11वीं कक्षा की समाजशास्त्र की किताब ‘अंडरस्टैंडिंग सोसायटी’ से गुजरात दंगों के संदर्भ को भी हटा दिया है।शहरों में लोग कहां और कैसे रहेंगे यह एक ऐसा सवाल है जिसे सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान के माध्यम से बांट दिया जाता है। रहने वाले इलाके धर्म और जाति के आधार पर बंटे होते हैं।अक्सर जातीयता और धर्म को लेकर उनके बीच तनाव और अलगाव का कारण बनता है। जैसे कि भारत में, धार्मिक समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव, आमतौर पर हिंदू और मुस्लिम के बीच होता है। हटाए गए पैराग्राफ में कहा गया है कि सांप्रदायिक हिंसा जब भी होती है तो यह एक विशिष्ट स्थानिक पैटर्न होता है।
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