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पाकिस्तान में आर्थिक संकट: कोई भी देश क्यों नहीं करना चाहता मदद?

पाकिस्तान में आर्थिक संकट मंडरा रहा है। वर्तमान में स्थिति बहुत गंभीर होती जा रही है। देखा जाए तो दशकों से पाकिस्तान की समस्या बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था, गरीबी, महंगाई, आतंकवाद के इर्द-गिर्द घूमती ही रही है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था वर्तमान में कम विकास, उच्च मुद्रास्फीति और बेरोजगारी, गिरते निवेश, अत्यधिक राजकोषीय घाटे और बिगड़ती बाहरी संतुलन स्थिति में फंसी हुई है।

पाकिस्तान की खराब हालत

कर्ज के जाल फंस चुके पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदहाल है। सरकारी खजाना खाली हो चुका है। पाकिस्तानी अखबारों के मुताबिक, पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 3 अरब डॉलर से भी कम रह गया है।यह राशि 15 दिनों के आयात के लिए ही पर्याप्त है।

आर्थिक संकट का कारण

वर्तमान आर्थिक संकट को मुख्य रूप से पाकिस्तान के अदूरदर्शी नीतिगत निर्णय के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, जिससे गैर-विकासात्मक और आर्थिक रूप से अव्यवहार्य परियोजनाओं पर व्यापक खर्च होता है। ग्वाडर-काशगर रेलवे लाइन परियोजना जैसी निरर्थक अवसंरचना परियोजनाओं के आर्थिक कुप्रबंधन और वित्तपोषण को दीर्घावधि ऋण साधनों के माध्यम से और घरेलू संस्थानों के बजाय बाहरी उधार पर बड़े पैमाने पर निर्भर रहने से इसकी परेशानियां बढ़ गई हैं।

पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली के लिए वित्त मंत्री मोहम्मद इशाक डार ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान को देश में आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार बताया है।

 क्यों नहीं मिल रही पाक को मदद?

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और चीन जैसे मित्र देश भी पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति से वाकिफ होने के बाद भी मदद को आगे नहीं आ रहे हैं। अगर पाक को ऐसे समय में अन्य देशों का साथ नहीं मिला तो स्थिति और ज्यादा खराब हो जाएगी।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष इसका सबसे बड़ा कारण है। गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह ने खुले तौर पर कहा था कि मित्र देशों ने हमसे कहा है कि पहले आईएमएफ से अपना मसला सुलझाओ और उसके बाद हमारे पास आओ। ऐसे में पाक के लिए जरूरी है कि पहले वह आईएमएफ से अपना मामला सुलझाए।

पाकिस्तान पर इतना कर्ज है कि अब दूसरे देशों को उस पर विश्वास करने में मुश्किल हो रही है।  मित्र देश इस बात से भी डरे हुए हैं कि पाकिस्तान के ऊपर पहले से ही अरबों का कर्ज है। ऐसे में उनका पैसा वापस मिलना मुश्किल हो जाएगा पाकिस्तान का कर्ज चुकाने का रिकॉर्ड बेहद खराब है।

चीन ने क्यों मना कर दिया मदद के लिए?

चीन और पाकिस्तान के रिश्ते पिछले कुछ समय से अच्छे नहीं चल रहें हैं, जिसका नतीजा चीन की बेरुखी हो सकती है।जिस चीन को पाकिस्तान लगातार अपना दोस्त बताता आया है उस चीन ने उसकी मदद करने के लिए मना कर दिया है। चीन ने श्रीलंका को दो साल की कर्ज राहत दी थी तो वह पाकिस्तान की मदद के लिए आगे क्यों नहीं आ रहा है?
अमेरिका ने भी पाकिस्तान से कहा है कि वह चीन से मदद मांगे।पाकिस्तान पर चीन का कर्ज काफी कम है। साथ ही, चीन का मकसद भारत के मुकाबले खड़ा होना भी है, जिसने हाल ही में श्रीलंका के लिए आईएमएफ को वित्तीय गारंटी दी है। वैसे पाकिस्तान ने कहा है कि चीन उसे 9 अरब डॉलर की मदद देगा। लेकिन ऐसा कब और कैसे होगा, यह स्पष्ट नहीं है।

भारत ने निभाए पड़ोसी का धर्म

आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा, भारत सरकार को पड़ोसी होने का धर्म निभाना चाहिए। डॉ कृष्ण गोपाल ने कहा कि यद्दपि पाकिस्तान हमसे लड़ता झगड़ता रहता है। फिर भी हम चाहते हैं कि वो सुखी रहें। हम मदद भेज सकते हैं। मगर वो मांगता ही नहीं है। लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आज से 70 साल पहले हम एक ही थे।

विदेश मंत्री एस जयंशकर ने पिछले दिनों में पाकिस्तान में जारी आर्थिक संकट पर भारत की स्थिति स्पष्ट कर दी थी। उन्होंने इस संकट के लिए वहां के हुक्मरानों को ही जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने  कहा कि अगर आप आतंक का उद्योग चलाएंगे तो इस तरह की बड़ी दिक्कतें तो आएंगी ही। जयशंकर ने आगे कहा कि पाकिस्तान को मदद देने को लेकर जब भी कोई बड़ा फैसला लिया जाएगा, इस दौरान स्थानीय जनभावना का जरूर ख्याल रखा जाएगा।

पाकिस्तान के लिए सुझाव

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को कम आय वाली विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पाकिस्तान को अपने शहरों की रहने की क्षमता में सुधार करने और किफायती आवास, विश्वसनीय जल आपूर्ति और अन्य सार्वजनिक सेवाओं जैसी गुणवत्ता वाली सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच प्रदान करने का लक्ष्य रखना चाहिए। हरित सार्वजनिक स्थानों को विकसित किया जाना चाहिए और श्रम बाजार को बढ़ाने के लिए शिक्षा प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि बाहरी उधार के माध्यम से अर्थव्यवस्था में असंतुलन को ठीक करना एक स्थायी समाधान नहीं है और इसलिए, पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप अपनी मौद्रिक और राजकोषीय नीति में संरचनात्मक आर्थिक सुधार लाने की आवश्यकता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अव्यवहार्य विकास परियोजनाओं पर अंकुश लगाने, आयात बिलों को कम करने और अपनी घरेलू फर्मों पर अधिक भरोसा करने से संभवतः पाकिस्तान के संकट को और बढ़ने से बचने में मदद मिलेगी।

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