केंद्रीय कैबिनेट से 4797 करोड़ रुपए की पृथ्वी योजना को अनुमति मिल गई है। इस योजना के तहत देश को सभी प्रकार की आपदाओं से पहले चेतावनी देनी होगी। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय देश की विभिन्न वैज्ञानिक संस्थाओं के साथ मिलकर इस योजना को लागू करेगा। ये योजना साल 2021 में शुरू की गई थी और 2026 तक लागू रहेगी। योजना की कुल लागत 4,797 करोड़ रुपए है।
पृथ्वी योजना
इस योजना के तहत पूरे देश में सस्टेनेबल तरीके से जीवित और निर्जीव रिसोर्सेस को खोजना है। और उन्हें संरक्षित करना है। इनमें आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय तीनों ध्रुवों पर भी नजर रखी जाएगी। मौसम से संबंधी चेतावनियां देनी होंगी। जैसे समुद्री तूफान, चक्रवाती तूफान, बाढ़, गर्मी, थंडरस्टॉर्म, बिजली का गिरना, सुनामी, भूकंप आदि।
इस योजना के अंतर्गत वर्तमान में पांच उप-योजनाएं चल रही हैं, जो कि वायुमंडल और जलवायु अनुसंधान-प्रारूप निरीक्षण प्रणाली और सेवाएं, महासागर सेवाएं, प्रारूप अनुप्रयोग, संसाधन और प्रौद्योगिकी, ध्रुवीय विज्ञान और क्रायोस्फीयर अनुसंधान, भूकंप विज्ञान और भूविज्ञान और अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण और आउटरीच आदि हैं।
योजना का मुख्य उद्देश्य
मंत्रालय की सहायता कर रहे ये संस्थान
योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए मंत्रालय निम्न संस्थानों की सहायता से योजना का संचालन कर रहे हैं।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग
- राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र
- समुद्री जीवन संसाधन और पारिस्थितिकी केंद्र
- राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र
- राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र
- राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान
- भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र
- राष्ट्रीय ध्रुव और महासागर अनुसंधान केंद्र
- भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान
- राष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान अध्ययन केंद्र
पृथ्वी प्रणाली विज्ञान योजना के हिस्से
पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में खासतौर से पांच हिस्से हैं। जो कि वायुमंडल, जलमंडल, भूमंडल, क्रायोस्फीयर, जीवमंडल और उनके बीच का जटिल संबंध हैं। इनके लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सभी पहलुओं पर समग्र रूप से कार्य करता है। पृथ्वी योजना के विभिन्न घटक एक-दूसरे पर निर्भर हैं। पृथ्वी के तीनों ध्रुवों आर्कटिक, अंटार्कटिक और हिमालय की खोज करने का भी निर्देश दिया गया है।
नई घटनाओं और संसाधनों की खोज करने की दिशा में पृथ्वी के ध्रुवीय और उच्च समुद्री क्षेत्रों की खोज करना। सामाजिक एप्लीकेशन के लिए समुद्री संसाधनों की खोज हेतु प्रौद्योगिकी का विकास और संसाधनों का सतत उपयोग करना।