एक देश एक चुनाव नियम क्या है?
एक देश एक चुनाव का अर्थ है लोक सभा, सभी राज्य विधान सभाओं और स्थानीय निकायों यानी नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराना। कमेटी ने बताया है कि 1957 में एक साथ चुनाव कराए गए, इसके लिए बिहार, बंबई, मद्रास, मैसूर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में राज्य विधान सभाओं को समय से पहले भंग करने के लिए भारत के चुनाव आयोग के समझाने पर केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा सचेत प्रयास किए गए थे। 1967 के आम चुनाव तक, एक साथ चुनाव बड़े पैमाने पर प्रचलन में थे।
मोदी जी इसलिए दे रहे जोर
एक देश एक चुनाव के निम्न लाभों को देखते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी इस नियम को लागू करने पर जोर दे रहे हैं।
- इस नियम लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली धनराशि बच जाएगी।
- पीएम मोदी कह चुके हैं कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी।
- भारत में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। इन चुनावों के आयोजन में पूरी की पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है।
- यह नियम लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा।
- पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी।
- इससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिलेगी।
- चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर ब्लैक मनी के इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है। लेकिन कहा जा रहा है कि यह बिल लागू होने से इस समस्या से बहुत हद तक छुटकारा मिलेगा।
पहले एक साथ ही होते थे चुनाव
अगर केंद्र सरकार देश में एक देश एक चुनाव को लागू करती है तो ये कोई पहली बार नहीं होगा जब इस तरह से देश में चुनाव कराए जाएंगे। आजादी के बाद कुछ सालों तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ ही होते थे। इससे पहले वर्ष 1952, 1957, 1962, 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे। 1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग किया था। तभी से एक देश एक चुनाव की परंपरा खत्म हो गई।
एक देश एक चुनाव की जरूरत क्यों?
बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त खर्च का बोझ पड़ता है। अगर राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले खर्च को भी जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़े और भी ज्यादा होंगे। इस कारण आपूर्ति श्रृंखला, व्यापार निवेश और आर्थिक विकास पर भी असर पड़ता है। सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों का बार-बार उपयोग उनके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। बार-बार आदर्श आचार संहिता लगाए जाने से विकास कार्यक्रमों की गति धीमी हो जाती है। इसके साथ ही लगातार चुनाव मतदाताओं को थका देते हैं और चुनाव में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करते हैं।
लागू करने से पहले क्या करना होगा?
कब से लागू होगा?
रिपोर्ट के मुताबिक विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो एक देश एक चुनाव नियम साल 2029 से ही लागू होगा। साथ ही इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे। मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं का कार्यकाल 6 महीने बढ़ाकर जून 2029 तक किया जाए। उसके बाद सभी राज्यों में एक साथ विधानसभा–लोकसभा चुनाव हो सकेंगे।
समिति की रिपोर्ट के मुताबिक
- समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले चरण के रुप में लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं।
- इसके बाद 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं।
- समिति ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, कर्मचारियों और सुरक्षा बलों संबंधी जरुरतों के लिए पहले से योजना बनाने की सिफारिश की है।
- इसके साथ ही निर्वाचन आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामार्श से एकल मतदाता सूची, मतदाता पहचान पत्र तैयार करेगा।
रिपोर्ट में दी गई यह सलाह
- लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के आम चुनावों के साथ-साथ पंचायतों और नगर पालिकाओं में चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 324A की शुरुआत की जाए।
- एकल मतदाता सूची और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र को सक्षम करने के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन किया जाए।
- सूची और पहचान पत्र में संशोधन का काम राज्य चुनाव आयोग की सलाह पर भारत का चुनाव आयोग करे।